बहुत बरस हुए .... कुछ बावरे युवाओ ने आज के दिन , इस देश के लिए फांसी को चुना ! वैसे वो काल अलग था . लेकिन आज भी वही युग है . बस कुछ नहीं है तो वो जज्बा जो देश के लिए उस वक़्त के युवाओ में था.......
भगतसिंग ने अपनी जेल डायरी में लिखा था , ‘‘तुझे जिबह करने की खुशी और मुझे मरने का शौक है मेरी भी मर्जी वही जो मेरे सैयाद की है...’’
देश के आजाद होने से लेकर आज तक की पूरी सामाजिक प्रक्रिया में बहुत से बदलाव आये है . लेकिन देश , अफ़सोस कि , नहीं बदल सका. कहीं तो कोई चूक हुई है .. चाहे वो हुक्मरानों से हुई हो या फिर इस देश की दो पीढ़ीयों से .
पता नहीं ....दिल में बड़ा दर्द होता है ...... ये सोचकर कि , कहीं उनकी शहादत बेवजह तो नहीं हुई...!!