Tuesday, September 22, 2015

प्रेम

प्रेम एक अंतहीन यात्रा और प्रतीक्षा ही तो है .....जो इस प्रतीक्षा को जी जाते है और यात्रा को पूरी करते है ; वो दुनिया से हार जाते है. और जो दुनिया से जीत जाते है वो क्या जाने कि प्रेम क्या है और उसकी यात्रा और प्रतीक्षा क्या है........!!!!
© विजय

Friday, September 11, 2015

प्रेमपत्र नंबर : ७८६ :

मुझे लिखना अच्छा लगता है. और ख़ास कर तुम्हे लिखना. और जब मैं तुम्हे लिखता हूँ तो बस सिर्फ तुम ही तो होती हो. और दूसरा कोई हो भी नहीं सकता न. मैं तुममे मौजूद स्त्री के प्रेम में हूँ और जब मैं उस स्त्री के प्रेम मे होता हूँ जो कि तुम हो तो मेरी कोई और दुनिया नहीं होती है. और सच कहूँ तो हो भी नहीं सकती ! और जब तुम, तुममे मौजूद स्त्री और उस स्त्री में मौजूद प्रेम जो कि शायद मेरे लिए ही मौजूद होते है तब मैं लिखता हूँ अक्षर, प्रेम, कविता , कथा और ज़िन्दगी ! © विजय

Wednesday, September 9, 2015

I , Me, Myself ...............!!!

I want to leave this world in this mood only ...
smiling . laughing . talking . caring .loving .
and of course living each moment blessed by GOD .
vijay


Thursday, September 3, 2015

Human race !

.......and one day GOD created humans and it was his last mistake !

and immediately humans started spoiling and killing his other creations .
humans killed environment , killed all types of animals , killed people over petty issues of land and money and woman , fought wars, killed own parents, brothers and sisters and finally started killing own kids ....!

GOD is still regretting of creating humans and I sometimes feel ashamed of being a part of human race ............!!!

what are we leaving behind for our children and grandchildren and coming generations !!!!

I lost words sometimes to express my grief and anguish over the acts of my fellow humans !

GOD ....is there a way to make them real humans !

vijay