मेरी जानां ;
मैंने अब तक के किसी भी ख़त में उन फूलो का ज़िक्र नहीं किया , जो तुम और मैं एक दुसरे के लिए लेकर आते थे .....
....पता नहीं वो फूल अब किस जगह दफ़न होंगे , लेकिन जब तक वो रहे उन्होंने खुशबू दी , हमारे इश्क की !!
और सारा जहाँ [ हमारा ] महकता रहा ....उन्होंने हर कोने को अपनी उस खुशबु से महकाया ... कभी मुझे , कभी तुझे, .. हर जगह ..सिर्फ हमारा इश्क ही खिलता और महकता रहा है .
....आज यूँ ही सोच रहा था कि फूलो का जब भी इतिहास बनेंगा ,तो उस इतिहास में कुछ हर्फ़ ,कुछ अक्षर जरुर हमारे फूलो के लिए भी होंगे ...है न .
पता है तुम्हे जब पाब्लो नेरुदा को इटली से रोम ले जाया रहा था , तब वहां के लोगो ने फूलो से उस बात का विरोध किया और फूल जीत गए . ..
उन फूलो को ,उनकी खुशबु को आज मैं सलाम करता हूँ.
विजय