Sunday, February 10, 2013

प्रेमपत्र नंबर : 61612




मेरी जानां ;

मैंने अब तक के किसी भी ख़त में उन फूलो का ज़िक्र नहीं किया , जो तुम और मैं एक दुसरे के लिए लेकर आते थे .....

....पता नहीं वो फूल अब किस जगह दफ़न होंगे , लेकिन जब तक वो रहे उन्होंने खुशबू दी , हमारे इश्क की !!

और सारा जहाँ [ हमारा ] महकता रहा ....उन्होंने हर कोने को अपनी उस खुशबु से महकाया ... कभी मुझे , कभी तुझे, .. हर जगह ..सिर्फ हमारा इश्क ही खिलता और महकता रहा है . 

....आज यूँ ही सोच रहा था कि फूलो का जब भी इतिहास बनेंगा ,तो उस इतिहास में कुछ हर्फ़ ,कुछ अक्षर जरुर हमारे फूलो के लिए  भी होंगे ...है न .

पता है तुम्हे जब पाब्लो नेरुदा को इटली से रोम ले जाया रहा था , तब वहां के लोगो ने फूलो से उस बात का विरोध किया और फूल जीत गए . ..

उन फूलो को ,उनकी खुशबु को आज मैं सलाम करता हूँ.

विजय

2 comments:

  1. तेरी चाहत
    फूलों की हसरत
    आह ! और मै मिट गयी
    देख ………अपने हाथों को
    खुश्बू बाकी है ना
    उम्मीद है
    काफ़ी होगी जीने के लिये …………

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