मैंने अपने भीतर के मौन को सूनी रातो में जागकर शब्दों में बदला है .
क्या तुम उन शब्दों में मौजूद मेरे मौन को सुन सकते हो .
ये वो मौन है जो अब हमेशा हमारे दरमियान रहेगा !
दरअसल ये वो मौन भी है जो हज़ारो सालो से हम जैसो के दरमियान रहा है .
मैं तो बस उस मौन की कश्ती का माझी हूँ .
हां ! ये कश्ती तुम्हारी है . नदी के इस पार मैं रहता हूँ . और उस पार तुम !
तुम नाम जानना चाहते हो . जान लो . नदी का नाम ज़िन्दगी है . कश्ती का नाम मोहब्बत है . माझी मैं हूँ और तुम ?
कौन हो तुम ?
क्या तुम उन शब्दों में मौजूद मेरे मौन को सुन सकते हो .
ये वो मौन है जो अब हमेशा हमारे दरमियान रहेगा !
दरअसल ये वो मौन भी है जो हज़ारो सालो से हम जैसो के दरमियान रहा है .
मैं तो बस उस मौन की कश्ती का माझी हूँ .
हां ! ये कश्ती तुम्हारी है . नदी के इस पार मैं रहता हूँ . और उस पार तुम !
तुम नाम जानना चाहते हो . जान लो . नदी का नाम ज़िन्दगी है . कश्ती का नाम मोहब्बत है . माझी मैं हूँ और तुम ?
कौन हो तुम ?
bahut khoob ...
ReplyDeletebahut khoob ...
ReplyDeleteमैं तुम्हारे क्यूँ का जवाब ............. बहुत खूब सर .....
ReplyDeleteमै कौन हूँ ? ।
ReplyDeleteमै हूँ उस कश्ती कि अधिकारिणी ,,,
तुम्हारे खामोश लम्हों की,रागिनी ,,
हूँ उस नदी की संगिनी
जीवन कि कश्ती को खेते तुम्हारी पतवार ,,
उस जीवन नदी में उतरती है ,,
अनजाने में hi सही lhron के तारों को तोड़ जाती है ,,
उन लहरों में रागिनी सहम जाती है ,,
सुदूर तक खामोशियाँ fir साथ चलने लगती है
............................... शीला डोंगरे