वेदप्रकाश
शर्मा चले गए .
और
हमारे so called महान साहित्यकारों ने उन्हें लुगदी [ pulp ] का लेखक मान कर खूब हल्ला
मचाया.
जहाँ तक
मैं समझता हु कि ink down is equal to literature written फिर चाहे वो कैसे भी लिखा हो या कोई भी लिखा हो .
लिखना ज्यादा महत्वपूर्ण है . दुनिया में
लिखने वाले कम है , पढ़ने वाले ज्यादा. कोई भी लिखे , उसके लेखन को सलाम करना चाहिए
, उसने कुछ तो लिखा . मन के भावों को शब्द दिया .
इन्हीं
वेद प्रकाश शर्मा ,ओम प्रकाश शर्मा, इब्ने शफी , कर्नल रंजित, सुरेन्द्र मोहन पाठक
इत्यादि ने हर युग के लोगों को पढ़ने की वजह दी है , और ये ज्यादा महत्वपूर्ण है .
और जो
ज्यादा पढ़ा जाए , जो ज्यादा जाना जाए वही सच्चा और अच्छा और लोकप्रिय साहित्य है .
मजे की
बात तो ये है कि कल मैंने बहुत से पोस्ट पढ़े और उनके पढ़े जिन्हें फेसबुक के अलावा बाहर कोई नहीं जानता . और वेद प्रकाश शर्मा ,ओम
प्रकाश शर्मा, इब्ने शफी , कर्नल रंजित, सुरेन्द्र मोहन पाठक इत्यादि को दुनिया
जानती है .... तो ये तथाकथित अपने आपको महान साहित्यकार समझने वाले साहित्यकार इस ऊंचाई
को इस जीवनकाल में पा नहीं सकते.
मैंने इन
तथाकथित साहित्यकारों को खूब पढ़ा है और अपना माथा पीटा है .
इसलिए
इन तथाकथित साहित्यकारों से बचे . और अपनी मन की सुने और वही पढ़े , जिसमें आपका
दिल लगे , चाहे वो प्रेमचंद हो , रविन्द्रनाथ हो ,वेदप्रकाश हो ,सुरेन्द्र मोहन
पाठक हो , शरतचंद्र हो [ आजकल इनकी एक पुरानी कहानी पढ़ रहा हूँ . ] या कोई और हो......[
मैं भी हो सकता हूँ ....]
बाकी इन
सब so called महान साहित्यकारों से बचे !
आपका
अपना
विजय
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