अकेलापन चुभता है किसी कैक्टस की तरह
और डसता है एक ज़हरीले नाग की तरह भी ;
भीड़ की शोर मचाती हुई तन्हाईयाँ
मन को कोई सावन नहीं दिखलाती
अकेलापन अब जीवन का बन गया है पर्याय
मृत्यु ; क्या तुम भी इतनी ही दुखदायी होंगी ?
और डसता है एक ज़हरीले नाग की तरह भी ;
भीड़ की शोर मचाती हुई तन्हाईयाँ
मन को कोई सावन नहीं दिखलाती
अकेलापन अब जीवन का बन गया है पर्याय
मृत्यु ; क्या तुम भी इतनी ही दुखदायी होंगी ?
मृत्यु तो बस नाम से बदनाम है वरना सारी परेशानियों का सबब यह ज़िंदगी ही है। वो गीत है न ज़िंदगी तो बेफा है एक दिन ठुकराये गी मौत महबूबा है हँस कर गले लगाये गी....
ReplyDelete