Wednesday, December 16, 2015

निर्भया

निर्भया , पता नहीं तुम किस आसमान में हो...
लेकिन मैं तुम्हे बता दू कि यहाँ तुम्हारे देश में कुछ भी नहीं बदला है...
सब कुछ वैसे ही है.. आज भी बलात्कार होते ही रहते है......लोग छूट जाते है..
और तो और वो दरिंदा जिसने सबसे ज्यादा अत्याचार तुम पर किये थे.. वो भी छूट रहा है..
ये देश और इस देश का कानून .....!!!
लडकियां आज भी आदमी नाम के वहशी जानवर से डरती है..
आदमियों को आज भी लड़कियों में सिर्फ गोश्त नज़र आता है..
कहने का मतलब ये है कि देश वैसा ही है और उससे भी बदतर होते जारहा है.. जैसा तुम छोड़कर गयी थी..
और कुछ कहने के लिए न मन है और न ही शब्द....
बस .. आज मन हुआ तो तुम्हे याद कर लिया........

विजय

© विजय का 3 AM लेखन


Tuesday, December 15, 2015

..मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर करना !

अब शायद ये समय आ गया है कि हम अपने अपने धर्मग्रंथो को फिर से पढ़े और समझे कि दुनिया के सारे धर्मग्रन्थ सिर्फ इंसान से प्रेम करना ही सिखाते है न कि नफरत करना........

इसी बहाने से हम अपने अपने ईश्वर / खुदा पर थोडा रहम करे, क्योंकि वो कभी नहीं चाहता है कि हम आपस में झगडे और उसके नाम पर मर मिटे और एक दुसरे को मारे .......
इकबाल ने कहा है......मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर करना !!!
अमीन
© विजय का 3 AM लेखन

Monday, December 14, 2015

प्यार , पैसा और ज़िन्दगी

कभी प्यार मिल जाता है
कभी पैसा मिल जाता है
और कभी कभी तो ज़िन्दगी भी मिल जाती है. ......
,,,,,पर तीनो का मिलना असंभव और दुर्लभ है !
© विजय का 3 AM लेखन

Tuesday, December 8, 2015

हे दुनिया के लोगो ,

हे दुनिया के लोगो ,
जिस दुनिया को हमने बनाया है और जब हम सब एक है तो तुम सब अलग अलग कैसे हो सकते हो . कौन सा धर्म और मज़हब......
हमने तो इंसान बनाकर दुनिया में तुम्हे भेजा था तुम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई और पता नहीं क्या क्या हो गए हो....
एक बार फिर से इंसान बनकर तो देखो...
हम तुममे में ही है......
© विजय का 3 AM लेखन

Sunday, December 6, 2015

सपने और ज़िन्दगी

कुछ सपने है जो मेरा पीछा नहीं छोड़ते है
और कुछ सपने है जिनका पीछा मैं नहीं छोड़ता हूँ.
पुराने सपने जीने नहीं देते है
और नये सपने मरने नहीं देते है
और ज़िन्दगी कहती है.....यार मेरे, मैं भी तो तेरा एक सपना हूँ, आ सांस ले ले ज़रा.
© विजय का 3 AM लेखन

Tuesday, September 22, 2015

प्रेम

प्रेम एक अंतहीन यात्रा और प्रतीक्षा ही तो है .....जो इस प्रतीक्षा को जी जाते है और यात्रा को पूरी करते है ; वो दुनिया से हार जाते है. और जो दुनिया से जीत जाते है वो क्या जाने कि प्रेम क्या है और उसकी यात्रा और प्रतीक्षा क्या है........!!!!
© विजय

Friday, September 11, 2015

प्रेमपत्र नंबर : ७८६ :

मुझे लिखना अच्छा लगता है. और ख़ास कर तुम्हे लिखना. और जब मैं तुम्हे लिखता हूँ तो बस सिर्फ तुम ही तो होती हो. और दूसरा कोई हो भी नहीं सकता न. मैं तुममे मौजूद स्त्री के प्रेम में हूँ और जब मैं उस स्त्री के प्रेम मे होता हूँ जो कि तुम हो तो मेरी कोई और दुनिया नहीं होती है. और सच कहूँ तो हो भी नहीं सकती ! और जब तुम, तुममे मौजूद स्त्री और उस स्त्री में मौजूद प्रेम जो कि शायद मेरे लिए ही मौजूद होते है तब मैं लिखता हूँ अक्षर, प्रेम, कविता , कथा और ज़िन्दगी ! © विजय

Wednesday, September 9, 2015

I , Me, Myself ...............!!!

I want to leave this world in this mood only ...
smiling . laughing . talking . caring .loving .
and of course living each moment blessed by GOD .
vijay


Thursday, September 3, 2015

Human race !

.......and one day GOD created humans and it was his last mistake !

and immediately humans started spoiling and killing his other creations .
humans killed environment , killed all types of animals , killed people over petty issues of land and money and woman , fought wars, killed own parents, brothers and sisters and finally started killing own kids ....!

GOD is still regretting of creating humans and I sometimes feel ashamed of being a part of human race ............!!!

what are we leaving behind for our children and grandchildren and coming generations !!!!

I lost words sometimes to express my grief and anguish over the acts of my fellow humans !

GOD ....is there a way to make them real humans !

vijay


Monday, August 31, 2015

कितना बदल गया इंसान !

जो लोग किसी भी कारणवश अपने बच्चो की हत्या करते है [ चाहे वो फॅमिली प्राइड हो, चाहे प्यार हो, चाहे पैसा हो, चाहे हॉनर किलिंग हो. चाहे कोई भी कारण हो - जो सिर्फ और सिर्फ आदमी के स्वार्थ और क्रोध और भय और कुंठा की वजह से जन्मता है ] ; उन्हें इंडियागेट पर खुले आम फांसी दे देना चाहिए !
-- विजय का गुस्सा !

Monday, August 17, 2015

अम्मा

......मैंने पहले बोलना सीखा ...अम्मा... !

फिर लिखना सीखा.... क ख ग a b c 1 2 3 ...
फिर शब्द बुने !
फिर भाव भरे !

.... मैं अब कविता गुनता हूँ  , कहानी गड़ता हूँ ..
जिन्हें दुनिया पढ़ती है ..खो जाती है .. रोती है ... मुस्कराती है ...हंसती है ..चिल्लाती है ...
.....मुझे इनाम ,सम्मान , पुरस्कार से अनुग्रहित करती है ...!

.....और मैं किसी अँधेरे कोने में बैठकर,
....खुदा के सजदे में झुककर ,
धीमे से बोलता हूँ ...अम्मा !!!

विजय

Thursday, January 22, 2015

पिताजी की स्मृति में...................


दोस्तों, आज पिताजी को गुजरे एक माह हो गए.

इस एक माह में मुझे कभी भी नहीं लगा कि वो नहीं है. हर दिन बस ऐसे ही लगा कि वो गाँव में है और अभी मैं मिलकर आया हूँ और फिर से मिलने जाना है. कहीं भी उनकी कमी नहीं लगी. यहाँ तक कि संक्रांति की पूजा में भी ऐसा लगा कि वो है. बस कल अचानक लगा कि फ़ोन पर उनसे बात करू तो डायल कर बैठा और सिर्फ फ़ोन की घंटी बजती रही. बहुत देर तक..............कोई उसे उठाने वाला नहीं था !

आज सोचा कि पिताजी की स्मृति पर कुछ लिखू.

पिताजी ने बहुत बरस पहले हमारे गाँव को रोजगार के लिए छोड़ दिया था. कलकत्ता में कुछ दिन रहे फिर नागपुर में आकर बसे. वही पर हम तीनो भाई बहनों का जन्म हुआ. और फिर हमारी पढाई नौकरी इत्यादि भी वही की शुरुवात है. पिताजी ने गाँव भले ही छोड़ा हो, लेकिन जैसे कि होता है, गाँव ने उन्हें और हमें नहीं छोड़ा. हम भी यदा-कदा गाँव जाते रहे. लेकिन गाँव में कुछ भी नहीं रहा था !

पिताजी की ज़िन्दगी में पांच टर्निंग पॉइंट आये. [१] उनकी नागपुर में नौकरी. [२] मेरा इंजिनियर बन जाना. [३] मेरी माँ की मृत्यु और [४] मेरी बहन की शादी. और फिर एक सबसे बड़ा और पांचवा टर्निंग पॉइंट आया. मेरी बेटी का जन्म, बस वो उसी में रम गए. हम सब एक तरफ और वो और मेरी बेटी एक तरफ. ज़िन्दगी बस गुजरती रही. और फिर इन सब के बाद, बहुत बरसो के बाद, जब हम तीनो भाई बहन धीरे धीरे जमने लगे अपनी ही अलग अलग दुनिया में तो वो कभी गाँव में रहते, कभी हम तीनो के पास रहते. उनकी ज़िन्दगी कुछ इसी तरह से गुजरती रही.

फिर मैंने अपने गाँव के टूटे फूटे घर को थोडा अच्छा बनवा दिया ताकि वो और मेरे ताऊ जी अच्छे से रह सके. ज़िन्दगी अच्छे से बस गुजरती रही.

उनके और हमारे परिवार के अन्य सदस्यों के दो पीढी के जेनेरेशन गैप में कई बाते कभी पसंद की गयी और कई बाते नापसंद की गयी. कुछ आदतों और बातो को स्वीकार किया गया, कुछ पर आपत्ति उठायी गयी. लेकिन मैं हमेशा उनके साथ रहा, भले ही उनकी कुछ बातो से मुझे मेरी विचारधारा नहीं मिलती थी. कई बार मेरा और उनका कई बातो पर विरोध हुआ. और फिर बाद में patch-up भी होता रहा. लेकिन फिर भी मेरे लिए पिता ही थे. और अंत तक रहे.

उनकी जब भी तबियत ख़राब होती, मैं या मेरा छोटा भाई हमेशा उनके पास होते. मेरे छोटे भाई ने भी उनकी बहुत सेवा की.उनके साथ होते. उनका बेहतर से बेहतर इलाज होता और फिर कुछ दिन साथ में गुजारने के बाद फिर गाँव में रहने जाते. जिस गाँव से वो वो सब कुछ खोकर बाहर निकले थे, हम ने उस गाँव को उन्हें वापस दिया था. घर और दूसरी सारी सुविधाओं के साथ !

और वो खुश ही थे. मुझसे हमेशा ही कहते रहते थे की तू इतना अच्छा क्यों है, तू हर जनम मेरा बेटा ही बनना. ऐसे ही प्रेम और अनुराग की बहुत सी बाते. और मैं बस मुस्करा देता था. वो अक्सर मुझसे अपनी की गयी गलतियों के बारे में भी दुखी होकर कहते, जिस पर मेरा कुछ विरोध रहा. लेकिन ये तो ज़िन्दगी है, बस इसे ऐसे ही गुजरना होता है. कभी ख़ुशी, कभी गम, कभी सही तो कभी गलत !

करीब ९-१० साल पहले जब मैंने अपने आपको ज़िन्दगी के एक नए आयाम स्पिरिचुअल डाईमेंशन में परावर्तित किया तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और ख़ुशी भी. और मुझसे कहते रहते कि तू जहाँ पहुंचा है वहां हममें से कोई नहीं पहुंचा. मैं मुस्कराकर कहता, आप सभी न होते तो मैं भी नहीं होता. बस ऐसे ही बातो से जीवन गुजर रहा था.

मैंने अपनी माँ को बहुत चाहा,अब भी चाहता हूँ, मुझे लगता है कि दुनिया में कोई और इंसान कभी भी मुझे मेरी माँ की तरह प्रेम नहीं कर सकेंगा. लेकिन मेरे पिताजी भी मुझे बहुत चाहते थे. मेरे स्वभाव में उन्हें मेरी माँ नज़र आती थी. जो क्षमा की देवी थी !

करीब ७ महीने पहले उनके एक रूटीन चेकअप के दौरान पता चला कि उन्हें liver cancer – terminal stage पर है. हम सब को एक आघात सा लगा. मैंने करीब ४ हॉस्पिटल में उन्हें दिखाया. पर सभी डॉक्टर्स ने एक ही बात कही की अब ज्यादा समय नहीं रहा है, मुश्किल से ६ महीने !

मेरे पिताजी को इस समाचार पर विश्वास नहीं हुआ. मैंने उनसे बैठकर बात की, उनसे कहा कि ये सच है. लेकिन अब इससे भी बड़ी बात ये है कि आपको पूरी तरह से जीना है और अपने जीवन के अंत को स्वीकार करना है. ये सब बाते उनके लिए मुश्किल थी. वो समझ नहीं पा रहे थे. उनके पैर में एक घाव हो गया था, मैं उसकी ड्रेसिंग करता, उन्हें दवाई देता और उनसे ढेर सारी बाते करते रहता. लेकिन जैसे ही मैं कुछ देर के लिए उनसे अलग होता वो अपने एकांत में चले जाते. वो अपने जीवन के इस तरह के अंत को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे.

फिर एक दिन मैंने उनसे पूछा कि वो कहाँ से जीवन को विदा कहना चाहते है, मेरे घर से या छोटे भाई के घर से या गाँव से. उन्होंने सोचकर कहा कि वो गाँव से ही विदा होना चाहते है क्योंकि वो वही पैदा हुए, वही बड़े हुए, वही पर शुरुवाती रोजगार किया और वही उनका ब्याह हुआ, वही पर से वो नागपुर पहुंचे और फिर अब वो वही से, अपने गाँव से विदा होना पसंद करेंगे.

मैंने गाँव में सारी व्यवस्था की. और उन्हें गाँव में लेकर गया. मैंने हर १० दिन में गाँव जाता,हफ्ता भर रहता जाता, उनके साथ वक़्त बिताता. मैंने दवाई और खाने पीने की सारी व्यवस्था कर दी. धीरे धीरे मेरा भी गाँव से एक रिश्ता बन गया. मैंने पिताजी के साथ बहुत देर तक बैठकर बहुत सी बाते करता.

धीरे धीरे मैंने उन्हें मृत्यु को प्रेम से और आनंद से स्वीकार करने के लिए तैयार कर दिया. अब वो सहज हो चुके थे. मैंने उन्हें बहुत सी कहानियाँ बतायी. लेकिन मृत्यु से शायद सभी को डर लगता ही है. उन्हें समय लगा सहज होने के लिए और मेरी ही सोच पर उतर कर जीने के लिए !

ज़िन्दगी अब जैसे रिवर्स गियर में चल रही थी. जैसे उन्होंने मुझे बड़ा किया था वैसे ही अब मैं उनके साथ कर रहा था. मैं उन्हें खिलाता. मैं उन्हें चलाता, मैं कहानी बताता, उनकी ड्रेसिंग करता, उनके कपडे बदलता, उनका मल-मूत्र साफ़ करता. उन्हें अपने साथ लेकर चलाता. उनकी खूब सेवा की.

मैंने उनसे कहा कि जैसे उन्होंने जीवन को स्वीकार किया है, वैसे ही वो मृत्यु को भी स्वीकार करे. जो हो गया वो हो गया. जो बीत गया वो बीत गया. उन्होंने एक भरा पूरा जीवन जिया है. एक परिवार, एक ज़िन्दगी. सब कुछ तो जी लिया है. अब किसी भी बात से उन्हें व्यथित नहीं होना चाहिए.

मैंने उनसे एक बार कहा, हो सकता हो की जीवन की इस आपाधापी  में इतने बरसो में कभी मुझसे कोई गलती हुई हो, तो वो मुझे माफ़ जरुर करे. क्योंकि ये ज़िन्दगी तो बहुत सी घटनाओ का ही जमा-पूँजी होती है.तो उन्होंने कहा कि मुझसे कभी भी कोई गलती नहीं हुई और उन्होंने मुझे ढेर सारा आशीर्वाद दिया था.

उनके लिए अंतिम दिनों में मैं उनका पुत्र ही नहीं बल्कि उनका दोस्त, उनकी माँ, उनका भाई, उनका सन्यासी गुरु बन गया था जो कि उनसे जीवन के अंत को स्वीकार करने की कला को जानने के बारे में कहता था.

और फिर इसी तरह से पिछले साल के ६ महीने गुजरे और उन्होंने २२ दिसंबर २०१४ को सुबह ५ बजे अंतिम सांस ली !

जैसे एक युग का ही अंत हुआ हो, पर मुझे तो अब भी वो करीब ही है ऐसा ही लगता है, कोई कमी नहीं महसूस होती है. वो अक्सर मुझसे कहते थे, विजया [ उन्होंने मुझे कभी विजय नहीं कहा, बस हमेशा विजया ही कहा, माँ भी विजया ही कहती थी ] तू हमेशा इतना शांत कैसे रह सकता है, इतनी मुश्किल में भी हँसना, ये तो बहुत कठिन है मैं उनसे कहता, यही सबसे आसान है इसी तरह से जीना है. और इसे ही जीवन कहते है. वो मुझे बहुत सा आशीर्वाद देते और मैं बस मुस्करा देता.

आज वो शरीर रूप में नहीं है, लेकिन उनका प्रेम और उनका आशीर्वाद हमेशा ही मेरे साथ है.

उनको नमन और श्रद्धांजलि.

विजय 

[ फोटो में मेरे पिताजी , मेरे बच्चो के साथ ]