Wednesday, July 11, 2012

प्यार

मेरे उम्र के कुछ दिन , कभी तुम्हारे साडी में अटके तो कभी तुम्हारी चुनरी में ....
कुछ राते इसी तरह से ; कभी तुम्हारे जिस्म में अटके तो कभी तुम्हारी साँसों में .....

मेरे ज़िन्दगी के लम्हे बेचारे बहुत छोटे थे.
वो अक्सर तुम्हारे होंठो पर ही रुक जाते थे.

फिर उन लम्हों के भी टुकड़े हुए हज़ार
वो हमारे सपनो में बिखर गए !

और फिर मोहब्बत के दरवेशो ने उन सपनो को बड़ी मेहनत से सहेजा . उन्हें बामुश्किल इबादत दी . और फिर अक्सर ही किसी बहती नदी के किनारे बिखेर दिए .
यूँ ही ज़िन्दगी के दास्तानों में हम नज़र आते है .. उन्ही सपनो को चुनते हुए.. अपने आंसुओ से सींचते हुए..

गर्मी के मौसम में साँसों से हवा देते हुए और सर्दियों में उन्ही साँसों से गर्माते हुए .
बारिशो में सपनो के साथ बहते हुए ..

कहानी बड़ी लम्बी है जानां ...

लेकिन मुझ में बड़ा हौसला है . कुछ खुदा का मेहर भी है

मैं हर रोज , अपनी बड़ी बेउम्मीद ज़िन्दगी से कुछ लम्हों में तुम्हारे लिए नज्मे बुनता हूँ और फिर उन्ही नज्मो के अक्षरों में तुझे तलाशता हूँ.

तुझे मेरा इकबाल करना होंगा इस हुनर के लिए जो दरवेशो ने मुझे बक्शी है ....मैं हर जन्म कुछ ऐसे ही गुजारना चाहता हूँ तेरे पलकों की छाँव में जहाँ तेरे हर अश्क में मेरी इस कहानी का अक्षर समाया हो .

हां , यही अब मेरी इल्तजा है .
और यही मेरा प्यार है तेरे लिये जानां !

हाँ !

2 comments:

  1. मैं हर जन्म कुछ ऐसे ही गुजारना चाहता हूँ तेरे पलकों की छाँव में जहाँ तेरे हर अश्क में मेरी इस कहानी का अक्षर समाया हो .

    हां , यही अब मेरी इल्तजा है .
    और यही मेरा प्यार है तेरे लिये जानां !

    आह ! क्या खूब इल्तिज़ा है क्या खूब प्यार है …………शायद यही तो मोहब्बत की इम्तिहाँ हैं……………वाह वाह वाह

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  2. मैं हर रोज , अपनी बड़ी बेउम्मीद ज़िन्दगी से कुछ लम्हों में तुम्हारे लिए नज्मे बुनता हूँ और फिर उन्ही नज्मो के अक्षरों में तुझे तलाशता हूँ.

    और यह तलाश न जाने कब तक जारी रहेगी,और इल्तजा भी
    बहुत सुन्दर

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