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Friday, March 10, 2017

क्षितिझ

मिलना मुझे तुम उस क्षितिझ पर
जहाँ सूरज डूब रहा हो लाल रंग में
जहाँ नीली नदी बह रही हो चुपचाप
और मैं आऊँ निशिगंधा के सफ़ेद खुशबु के साथ
और तुम पहने रहना एक सफेद साड़ी 
जो रात को सुबह बना दे इस ज़िन्दगी भर के लिए
मैं आऊंगा जरूर ।
तुम बस बता दो वो क्षितिझ है कहाँ प्रिय ।
वि ज य

Friday, August 26, 2016

एक मरे हुए देश की कथा


तो हुआ यूँ कि एक मरे हुए देश में , एक जिंदा आदमी ने अपनी जिंदा पत्नी को एक सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती किया . अब सरकारी हॉस्पिटल भी मरा हुआ ही था. सो वहाँ वो औरत भी मर गयी , अब ये जो जिंदा आदमी था , इसके पास तो खाने के भी पैसे नहीं थे . और हमारे मरे हुए देश का मरा हुआ सरकारी दवाखाना – उन्होंने इसे कोई वाहन भी नहीं दिया . तो मजबूर होकर ये बंदा अपनी पत्नी के शव को अपने कंधे पर शिव की तरह रखकर अपने गाँव चल पड़ा जो कि करीब ६० किलोमीटर दूर था . साथ में रोती हुई उसकी बेटी भी चल दी . हॉस्पिटल मरा हुआ था . वहाँ के लोग भी मरे हुए थे , और शासन तो मरा हुआ ही था. उसे कोई गाडी नहीं मिली और वो चल पड़ा !
करीब दस किलोमीटर तक वो यूँ ही शिव बन कर चलता रहा . मरे हुए लोगो ने फोटो खींचा , मरे हुए लोगो ने विडियो बनाया , मरे हुए लोग उसे चलते हुए देखते रहे . लेकिन कोई भी मदद को नहीं आया . क्योंकि या देश , या समाज और यह शासन और इस देश के लोग भी मरे हुए थे.
कुछ दूर के बाद किसी जिंदा बच्चे ने शासन में किसी अधमरे आफिसर को मरे हुए समुदाय के बीच इस जिंदा बात की खबर दी . तो उस शिव रुपी आदिवासी को अंत में गाडी मिली.
कहानी बस इतनी ही है. इस कहानी के लिए कोई मरा हुआ मीडिया सामने नहीं आया , कोई मरी हुई मोमबत्ती गैंग सामने नहीं आई , कोई बड़ी बिंदी लगाये हुए मरी हुई गैंग नहीं आई , कोई मरा हुआ पढा लिखा बंदा / बंदी  सामने नहीं आई . कोई नहीं आया.


मैंने तो पहले ही कहा है कि ये एक मरे हुए देश के मरे हुए लोगो की मरी हुई कथा है .

आगे कुछ नहीं कहना ......
विजय [ एक मरा हुआ लेखक ]
Post Script : किसी भी देश को एक देश, उस देश के लोग बनाते है. और देश को उसके लोग ही मार देते है. जब भी मैं इस तरह का कोई समाचार देखता हूँ तो बस लगता है कि मैं एक मरे हुए देश के मरे हुए समाज के , मरे हुए शासन में जी रहा हूँ [ ??? ]
इंसान को सिर्फ उसकी संवेदनशीलता और मानवता ही, इंसान बनाती है . और ये अगर नहीं रहे तो हम जानवरों से भी गए गुजरे है
अस्तु और प्रणाम

विजय [ एक जिंदा इंसान ]

Saturday, June 4, 2016

ज़िन्दगी और मैं

ज़िन्दगी और मेरे दरमियाँ एक लकीर है
लकीर के इस तरफ मैं और मेरा हुनर है ....
लकीर के उस तरफ दुनिया और दुनिया की धन दौलत है .
ज़िन्दगी और मेरे दरमियाँ, कई सालो से एक अघोषित युद्ध भी शुरू है.. 
ज़िन्दगी शायद जीत रही है, लेकिन हार तो मैं भी नहीं रहा हूँ....
कभी तो खुदा की मेहर होंगी....
कभी तो ज़िन्दगी मुझ पर अपनी खुशियों की बरसात करेंगी..
कभी तो.....
हार तो मैं मानने वाला नहीं...
विजय

Saturday, February 13, 2016

यह देश !!!

आजकल देश ऐसा हो गया है कि क्या कहे.. 
न न्यूसपेपर देखने का मन होता है न न्यूज़चैनेल देखने का मन होता है...
एक अच्छे खासे देश की कुछ लोगो ने अपना दो कौड़ी का दिमाग लगा कर ऐसी तैसी कर दी है... जहाँ देखो ... एक अजीब सा जूनून और पागलपन.......
अरे यहाँ लोगो को दो वक़्त की रोटी ठीक से कमाई नहीं जाती और ये हैै कि देश में हल्ला मचाये हुए है... और ऊपर से बड़ी बात ये कि सभी पढ़े लिखे है ......
विजय



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